इंजीनियरिंग के छात्रों का क्या है भविष्य

तकनीकी शिक्षा मानव संसाधन की स्थिति सुधारने की दिशा में पहला कदम है जिससे लोगों के जीवन स्तर में सुधार लाया जा सके। तकनीक के विकास ने दुनिया में दुरियों को कम करने साथ प्रतिस्पर्धा को बढ़ा दिया है जिसमें अक्षमता और प्रतिभा की कमी के लिए कोई स्थान नहीं बचता

भारत में 1847 में रूड़की में पहले सिविलइंजीनियरिंग महाविद्यालय की स्थापना के साथ तकनीकी शिक्षा की शुरुआत हुई। आजादी के समय मुश्किल से 4 डिग्री प्रदान करने वाले और 8 डिप्लोमा प्रदान करने वाले विश्वविद्यालय की मौजूदगी के बाद से लेकर साल 2006-07 में हो चुके 1,511 और वर्ष 2014-15 में 3,345 कॉलेजों के साथ तकनीकी विश्वविद्यालयों की महत्ता में एक बड़ी कमी देखी गई।

आजादी के बाद से भारत ने तकनीकी शिक्षा में प्रभावशाली प्रगति की परंतु साल दर साल बढती कॉलेजों की संख्या सकारात्मक परिणाम की बजाय तकनीकी शिक्षा के स्तर को सुधारने में न केवल नाकाफी साबित हुई बल्कि इंजीनियरिंग के हजारों छात्रों के रोजगार रहित रह जाने जैसे भयानक परिणाम भी सामने आए।

हर साल करीब 1.5 मिलियन छात्र इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त करते हैं जिनमें एक छोटा हिस्सा ही डिग्री पाने के तुरंत बाद नौकरी पाने के काबिल होता है। विशेषज्ञों के अनुसार कुल 1.5 मिलियन छात्रों में 20 से 33 प्रतिशत छात्रों की संभावना होती है कि उन्हें वर्तमान डिग्री और ज्ञान के दम पर कभी भी नौकरी न मिले। साथ ही साथ वे छात्र जो नौकरी पाने में कामयाब हो जाते हैं उनके वेतन में उनकी नाकाबलियत झलकती है।  इसके अलावा उनके उसी स्तर पर कार्य करने की संभावना भी काफी बढ़ी हुई होती है। इस प्रकार ऐसे छात्र एक ही स्तर पर वर्षों तक कार्य करते रहते हैं।

इंजीनियरिंग शिक्षा की खोती महत्ता और इसके गिरते स्तर के लिए जिम्मेदार कारणों में कॉलेजों की जरूरत से ज्यादा संख्या को जिम्मेदार ठहराया जाता है। इसके अलावा भारत में शिक्षा पद्धति और सामाजिक तौर पर जिम्मेदार कारणों को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

भारत में शिक्षा को ज्ञान प्राप्ति के बजाय काम प्राप्ति का साधन समझा जाता है। छात्रों की रुचि ऐसी डिग्रीयों में होती है जिनसे नौकरी पाना आसान और निश्चित हो। इसी खोज ने भारत में इंजीनियरिंग शिक्षा को खासा प्रभावित किया और हालात ऐसे बन गए जिनमें आखिरकार यह डिग़्री भी शिक्षा की गारंटी नही रही।

नौकरी पाने की इच्छा लिए इंजीनियरिंग की तरफ रुख करने वाले छात्रों की बढ़ती संख्या देखकर कुछ ही सालों के दरमियान अचानक ही चौकाने वाली बढ़ोतरी देखी गई। इनकी रुचि देखते हुए इंजीनियरिंग कॉलेज में भी तेजी से बढ़ोत्तरी दर्ज की गई।

कॉलेजों की ज्यादा संख्या के कारण अधिक छात्रों को इंजीनियरिंग में दाखिला मिलने लगा तथा प्रतिस्पर्धा में कमी आई। आसानी से प्रवेश मिलने की वजह से प्रतिभाशाली छात्रों के अलावा औसत दर्जे के छात्रों के रूप में एक बड़ी खेप हर साल बाहर आने लगी। इन डिग्रीधारियों का एक बड़ा हिस्सा विषय में कमजोर साबित होने लगा और इस प्रकार नौकरी पाने वाले इंजीनियरों की संख्या में भारी कमी आई।

नौकरी मिलने में आने वाली मुश्किलों ने एक नए पहलू को जन्म दिया जिसमें इंजीनियरिंग के छात्रों का अन्य क्षेत्रों और इंजीनियरिंग में ही उच्च शिक्षा की तरफ रुझान साफ नजर आने लगा। नौकरियों की कमी ने छात्रों को पोस्ट ग्रेज्युशन की तरफ मोड़ दिया। इंजीनियरिंग छात्रों की MBA और पत्रकारिता जैसे अलग क्षेत्रों में रुचि काफी हद तक बढ गई साथ ही साथ इन्हें नौकरी पाने का अगला कदम समझा जाने लगा।

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